बेहया विनीता अस्थाना

Shayari Collection
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बेहया विनीता अस्थाना PDF Book Free Download

बेहया_विनीता_अस्थाना

 अध्या य 1

छत के उस ना चते हुए पंखे पर उसकी नि गा हों का सूना पन टि क गया था ।
‘मैं क्या सि र्फ़ एक शरी र भर हूँ? मैं बस शरी र भर तो नहीं हूँ, मैं एक आत्मा हूँ, एक
दि ल... जि सकी कुछ चा हतें हैं। एक दि मा ग़ जि सकी अपनी सो च है। क्या ये वा क़ई मुझे
प्या र करता है? या इसे सि र्फ़ सेक्स चा हि ए?’
उसे कुछ भी फ़ी ल नहीं हो रहा था , सि वा य अपने ऊपर एक और शरी र के बो झ के। वह
उसके जुनून और शि द्दत को ज़रा भी महसूस नहीं कर पा रही थी । उसकी नि गा हें अब उस
लड़के के चेहरे पर जम गयी थीं । वह उसके हो ठ चूमने ही वा ला था कि अचा नक उसने
चेहरा घुमा लि या और सवा ल कि या ।
“क्या तुम मुझसे प्या र करते हो ?”
“क्या ?” वह भौ चक्का था ।
“मैंने पूछा कि क्या तुम मुझसे प्या र करते हो ?” ना म्या ने फि र से अपना सवा ल दो हरा या ।
इस बा र आवा ज़ थो ड़ी तेज़ थी ।
ऐसे वक़्त पर उठे इस अटपटे सवा ल से उसका ब्वॉ यफ़्रेंड चौं क गया । उसने एक झटके में
जवा ब दि या , “बेशक़ मेरी जा न! मैं तुमसे बहुत प्या र करता हूँ।”
“तो वो प्या र मुझे महसूस क्यों नहीं हो रहा ?” ना म्या उसके जवा ब से कन्विं स नहीं हुई।
“मैं पि छले दो घंटे से तुम्हें और क्या महसूस करा रहा हूँ? तुम्हें हुआ क्या है?” ब्वॉ यफ़्रेंड
अब खि सि या ने लगा था ।
“मेरा मतलब ‘ये’ नहीं है...” वह कुछ कहना चा हती थी , मगर बो ल नहीं पा ई।
“ये मेरा प्या र ही तो है, मेरी जा न।” उसने प्या र शब्द पर ज़ो र देते हुए कहा ।
“हाँ ! मुझे पता है कि यही तुम्हा रा प्या र है। लेकि न मैं सेक्स के बा रे में बा त नहीं कर रही
हूँ।” ना म्या ने सि रे से नका र दि या ।

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